Wednesday, March 23, 2011

ये है मेरे अपने

हेल्लो दोस्तों 
मै फिर आ गया अपना ब्लॉग लेकर

 आज मै आपको अपने अपनों के बारे में बताऊंगा. वो लोग जो मेरे जनम से पहले से ही मेरे साथ जुड़े है
 और वो भी जो मेरे मम्मा  डैडी के काफी  करीब है
 .इनमे सबसे पहला नंबर है श्रावणी मासी का.मासी और मम्मा बहुत अच्छे दोस्त है इतना अच्छे की अपनी अधिकतर बात शेयर करते है.मम्मा और पापा के बाद वो मासी ही है जिनको मेरे आने का सबसे ज्यादा  इंतज़ार था. आपको पता है मेरे इस दुनिया में आने के बाद मेरी मम्मा से भी पहले मुझे श्रावणी मासी ने देखा था
 और ये है मासी का बेटा और मेरा फर्स्ट फ्रैंड आदि. .
 आदि और मेरी दोस्त तब से है जब आदि २ महीने का था. आप सोच रहे होंगे ये कैसे हुआ तो तभी से तो मै इस दुनिया में आने की तैयारी कर रहा था
ये है kunual यानि मेरा कुन्नु भैया और उसकी  मम्मी बाबी और पापा.बंटी .ये मेरे चाचा चाची है. 
मै और कुन्नु भैया इतने सिमिलर है कि कई बार लोग कुन्नु भैया की पुरानी फोटो देखकर उसे मेरी फोटो समझ लेते है है न कमाल.

अरे धोखा मत खाइए  ये मै नहीं कुन्नु भैया है .

 अब इनकी बारी
इनसे मिलो ये है मेरी मम्मा की छ ग फ्रैंड और पापा की मुह बोली बहन मनीषा बुआ. ये इनकी  शादी के दिन की फोटो है. अब आप सोच रहे होंगे ये छ ग क्या है? तो मै आपको बता दूँ छ ग मतलब छत्तीस गढ़ .ये मेरी मम्मा का तकिया कलाम है
उनके साथ है मम्मा की एक और  फ्रैंड नेहा मासी.वैसे तब मम्मा काफी मोटी थी. मै पेट में जो था. वो तो अब भी मोटी है इसलिए तो डैडी  उनको मेरी मोटी मम्मा कहते है.

और ये है मेरी बहन अरुषि.
  डैडी के फ्रैंड अनिल अंकल और डोली आंटी की बेटी

 आज बस इतना ही.बाद में आपको अपने बारे और भी काफी  कुछ बताऊंगा और अपनी पहली होली की फोटो  भी आपके साथ शायर करूँगा. तब तक touch में रहिएगा .


                                                                      दर्श की सलाह
 मैंने सोचा क्यों न मै अपने ब्लॉग के जरिये नवजात शिशुओं की कुछ ऐसी समस्याओं के बारे में बात करू जो अक्सर माता पिता को परेशान करती है इसलिए मैंने यह कॉलम शुरू किया है

 आपको पता है जब मै पैदा हुआ तो मुझे और मम्मा को पूरे२४ घंटे सक दुसरे से दूर रखा गया और जब मुझे मम्मा के पास ले जाया गया उसके दूसरे ही दिन मुझे पीलिया हो गया और मै फिर मम्मा से दूर चला गया.


 करीब चार दिनों बाद मै मम्मा के साथ घर आ पाया था
 वो टाइम मैंने और मम्मा डैडी ने कैसे कटा है वो हम जानते है या हमारे जैसे और दूसरे लोग जिनके बच्चों को यूँ इस बिमारी से दो चार होना पड़ा हो.
आज मै आपको बच्चो में पीलिया कैसे और क्यों होता है इसके बारे में बताऊंगा ताकि आप भी अपने  नवजात को जल्दी ही ठीक कर सकें. वैसे डॉ शमा बत्रा आंटी कहती है की आजकल यह लगभग हर बच्चे को  जनम के बाद हो जाता है तो इअके बारे में जानकारी रखना जरुरी हो गया है.

जब नवजात को हो जाए पीलिया
कभी-कभी बच्चे के जन्म के 1-2 दिन बाद ही बच्चे का शरीर व आंखों का कोना पीला पड़ जाता है। ऐसे लक्षण बच्चे में पीलिया रोग होने के कारण होता है। पीलिया बच्चों में जन्म के उपरांत हो जाता है जैसा कि मुझे हुआ था। डाक्टर कहते हैं कि पीलिया का यह रूप एक सामान्य बात हो गई है।

वैसे सिजेरियन ऑपरेशन से जन्म लेने वाले बच्चों में ये पीलिया आमतौर पर देखा जाता है, जो जन्म के और एक दो दिन के बाद से शुरू होकर डेढ़ दो हफ्ते तक बना रहता है। पर मैं तो सिजेरियन नहीं था। डा. बत्रा ने मम्मा को बताया था कि यह माता और पिता के ब्लड ग्रुप पर भी निर्भर करता है। ज्यादातर बच्चों में इसके उपचार की जरूरत नहीं पड़ती। परंतु यही पीलिया अगर बढ़ जाय, तो खतरनाक भी हो सकता है। इसका असर बच्चे के मस्तिष्क पर बुरा पड़ता है।

कारण
हेपेटाइटिस 'एÓ पीलिया का एक बड़ा कारण है। हर प्रकार का हेपेटाइटिस अलग-अलग का होता है। हेपेटाइटिस 'एÓ के टीके से हेपेटाइटिस 'बीÓ का बचाव नहीं हो सकता है। यदि पीलिया शिशुओं में हो, तो उसे गंभीरता से लें। क्या करें?

डा. शमा बत्रा कहती हैं कि घर मे पैदा होने वाले या अस्पताल से जल्दी घर आ गये नवजात शिशु के रंग पर ध्यान रखें। उसे हर रोज सूरज की रोशनी मे ले जाकर देखें। जब भी आपको उसका रंग पीला लगे तुरन्त डाक्टर को सूचना दें।
निगेटिव आर एच रक्त वर्ग वाली माताओं या उन माताओं, जिनके पहले बच्चों को पीलिया हो चुका है, का प्रसव अस्पताल में डाक्टर की देखरेख में ही करायें।
एक बार पीलिया होने पर खून की जांच द्वारा बिलीरूबिन के स्तर का निर्धारण करना आवश्यक होता है। 
उपचार
सामान्य पीलिया मे तो शिशु को किसी उपचार की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। सिर्फ रक्त मे बिलीरूबिन के स्तर पर नजऱ रखनी होती है और निरन्तर एक बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क बनाये रखना होता है। जब रक्त मे बिलीरूबिन का स्तर बढ़ता जाये या यह लगे कि पीलिया असमान्य प्रकार का है तो इसके उपचार की आवश्यकता पड़ती है। ये कई प्रकार से किया जाता है-

सूर्य का प्रकाश
सबसे पहले तो शिशु को सुबह की धूप दिखाना चाहिए। मेरे मम्मा डैडी भी यही करते थे। अगर फिर भी ठीक न हो तो डाक्टर की मदद लेने में कोई हर्ज नहींहै। 

प्रकाश चिकित्सा(फोटोथेरेपी) मशीन
मुझे प्रकाश चिकित्सा दी गई थी। इसमें मुझे प्रकाश के नीचे नंगा करके करीब पचास सेमी नीचे लिटाते हैं। मेरी ऑंखों को तेज रोशनी से बचाने के लिये आंख पर मोटा काला कपड़ा बांधा गया था।  यहां पर मुझे हर समय लेटे रहना पड़ा था।

 प्रकाश चिकित्सा नुकसान
-जब मैं इसके नीचे नंगा लेटा था तो मुझपर पडऩे वाले प्रकाश से मेरी पतली त्वचा से पानी धीरे-धीरे उड़ता जा रहा था।
मुझे दस्त तो नहीं हुए थे पर कभी कभी फोटोथेरेपी शुरू करते ही बच्चे को पतले और हरे दस्त होने लगते हैं जो कि बिलीरूबिन के आन्त में पहुंचने के कारण होते है। ये दस्त फोटोथेरेपी बन्द करने के कुछ समय बाद अपने आप ही बन्द हो जाते हैं।
 फोटोथेरेपी की तेज रोशनी शिशु के आंख के परदे (रेटिना) को नुकसान पहुंचा सकती हैं मेरी आखें भी सूज गई थीं। फोटोथेरेपी के समय आंखों पर मोटा काला कपड़े का आई पैड हमेशा बंधा रहना चाहिये।
-प्रकाश शिशु के आन्तरिक जननांगों पर बुरा असर न डाले इसलिये उन्हें छोटे डायपर्स से ढक देना चाहिए।
-कभी कभी कोशिका के अन्दर पाये जाने वाले गुणसूत्रों या क्रोमोजोम्स का विखण्डन भी देखने को मिल सकता है।
एकस्चेन्ज ब्लड ट्रान्सफयूजन
यह स्थिति जभी आती है जब आप अपने बच्चे को सही समय पर हास्पीटल नहीं ले जाते हैं। जब रक्त में बिलीरूबिन का स्तर इतना अधिक बढ़ जाये कि उसके मस्तिष्क में जाकर वहां नुकसान पहुंचाने का खतरा पैदा हो जाये ऐसे बच्चों का खून सामान्य खून से विस्थापित कर दिया जाता है जिसे एक्सचेंज ब्लड ट्रांसफ्यूजन  कहते हैं। जहां ये ट्रान्सफयूजन खर्चीला है वहीं खतरनाक भी। विशेषज्ञों के हाथ में इसमें शिशु के मृत्यु की संभावनायें तीन से 5 प्रति हजार से अधिक नहीं होती।

गम्भीर या खतरनाक दिमागी पीलिया (कनिक्टेरस)
इसी तरह कुछ शिशुओं रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा काफी बढ़ सकती है और बिलीरूबिन मस्तिष्क के अन्दर प्रवेश कर उसके कई भागों को स्थाई रूप से नुकसान पहुंचा देता है। इस को ही कनिक्टेरस कहते हैं। इस में शिशुओं का मानसिक विकास बुरी तरह प्रभावित होता है। उनको गर्दन सम्भालना, बैठना, खड़े होना, चलना, बोलना आदि सीखने में सामान्य से बहुत ज्यादा समय लगता है। कभी-कभी तो लम्बी आयु तक वे न बैठ पाते हैं , न चल पाते हैं, न चीजे पकड़ पाते हैं और न खुद खाना ही खा पाते हैं। कभी-कभी तो वे न पढने लायक हो पाते हैं न कुछ सीखने लायक। उनकी सुनने और देखने की क्षमता भी बुरी तरह प्रभावित होती है। रक्त में बिलीरूबिन का स्तर जब बीस मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से कम होता है तो सामान्य परिपक्व शिशु मे कर्निंक्टेरस होने की सम्भावनायें नगण्य होती है। पर जब ये स्तर 30 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से अधिक होता है तो कनिक्टेरस होने की सम्भावनायें बहुत अधिक (करीब करीब शत प्रतिशत)  होतीं हैं। ऐसा चाइल्ड स्पेशलिस्ट का मानना है
 आशा है मेरी बातों से आपको कुछ मदद मिलेगी
अच्छा अगली बार फिर कोई सलाह लेकर आऊंगा जो आपके नवजात के फायदे की हो.

Sunday, March 13, 2011

कुछ अपने बारें में


ये हूँ मै अथर्व देवांगन यानि आपका दर्श 
और ये है मेरे अलग अलग अंदाज़ 
कभी हँसता हुआ तो कभी कल्पना में खोया हुआ. 
 
 उन दिनों मै न जाने क्या क्या सोचकर मुस्कुराया करता था
पर अब मै यूँ ही नहीं हँसता अब तो मेरी हंसी महगी हो गई है . जब मुझे कोई अच्छा लगता है मै तभी हँसता हूँ. अब ये मै बाद में बताऊंगा कि मुझे अच्छा कौन लगता है अभी तो मेरे परवार से मिलवाताहूँ 

 ये है मेरे डैडी

ये है मेरी मम्मा











हम  delhi में रहते है पर  हमारा घर छत्तीसगढ़ में है
मेरे दादा-दादी भिलाई में रहते  है
और नानी नाना और मामा रायपुर में  

अभी बस इतना ही धीरे धीरे आपको अपने बारे में सब बताऊंगा अभी तो मुझे मम्मा चाहिए 
मम्मा where  r u ?