Sunday, April 10, 2011

मैं गांधी को नहीं अन्ना को जानता हूं

हेलो दोस्तों
आज मै अपने मूड से हटकर कुछ संजीदा मसलों पर आपसे बात करने आया हूँ 

सुना है भारत में जन क्रांति हुई है, वह भी एकदम गांधी जी की स्टाइल में। और तो और मैंने यह भी सुना कि सत्याग्रह की जीत फिर एक बार हुई। तो मैंने भी सोचा कुछ जानना चाहिए इसके बारें में। मम्मा-डैडी तो 5 अप्रेल से ही इस बात की चर्चा कर रहे थे कि चलो कोई तो है जो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सकता है। फिर मैंने मम्मा के साथ टीवी देखना शुरू किया और तब मुझे पता चला कि आज के गांधी अन्ना हजारे हैं। मैं तो क्या मम्मा भी इससे पहले उनके बारे में कुछ नहींजानती थीं पर अब तो पूरा देश ही नहींविदेशी भी न सिर्फ अन्ना को जानते हैं बल्कि उनकी ताकत को भी पहचानते हैं। 

आखिरकार 72 वर्षीय अन्ना का अन्न त्याग काम आया और सरकार को उनके सामने झुकना पड़ा। सुना है कि 1969 से लोकायुक्त की आस लगाये बैठे भारत में 1969 से 2008 तक लोकपाल विधेयक संसद में नौ बार पेश किया जा चुका है लेकिन अभी भी लोकपाल अस्तित्व में आने की बाट जोह रहा है। हालांकि इस मामले में राज्य सरकारें ज्यादा सक्रिय निकली और देश के अधिकांश राज्यों में आज लोकायुक्त का पद राज्यों की शोभा में चार चांद लगा रहा है। लेकिन केन्द्र में इस मामले में अभी भी एकराय नहीं बन पायी है। 43 साल से अटके पड़े लोकपाल बिल को लागू करने में मनमोहन सिंह सरकार की असमर्थता सिर्फ एक राजनैतिक विवशता नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार के व्यवस्था की नस नस में समाये होने से जुड़ी स्वीकार्यता भी है। खैर अब बन जाएगी ऐसी आशा है और अगर नहींबनी तो अन्ना फिर आंदोलन करेंगे। गांधीवादी अन्ना हजारे के अनशन के सर्पोट में पूरे देश में हजारों प्रदर्शन ,केंडल मार्च और धरना प्रदर्शन हुआ। इसमें बुद्धिजीवी ,सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल थे। पर सबसे बड़ी बात थी कि क्रिकेट और पार्टियों की दीवानी मानी जाने वाली युवापीढ़ी भी उनके कदम से कदम मिला रही थी। आधुनिक तरीकों जैसे फेसबुक, ट्वीटर, ब्लाग आदि के जरिए उनका समर्थन कर रही थी जो सचमुच किसी बड़ी क्रांति से कम नहींथा।

आज मुझे गर्व हो रहा है कि मेरे सीनियर विश्व कप क्रिकेट के अलावा भी कई बातों पर अपनी गहन नजर रखते हैं और समय आने पर अपनी पूरी शक्ति के साथ उठ खड़े होते हैं क्योंकि उनका मकसद सिर्फ हंगामा खड़ा करना नहींहैं वो तो तस्वीर बदलना चाहते हैं। आज यह बात साबित हो गई कि भारत की युवापीढ़ी न तो बेवकूफ है और न ही गैरजिम्मेदार। उनको पता है कि अपनी एनर्जी को कब और कहां लगाना चाहिए। मैं उनसे काफी कुछ सीखने को बेताब हूं। अन्ना की जीत से सरकार को या यूं कहें कि भ्रष्ट सरकार को एक सबक जरूर मिला होगा कि अब भी भारतीय खून में चिंगारी बाकी है जो कभी भी ज्वालामुखी बन उनको जला सकती है। बस उनको अन्ना जैसे एक मार्गदर्शक जरूरत है।

मैं तो काफी खुश हूं कि मेरे जन्म के बाद यह हुआ। अब मुझे किताबों से पढक़र सत्याग्रह का मतलब नहींसमझना पड़ेगा जैसा कि मेरे मम्मा-डैडी और उनके दोस्तों को समझना पड़ा था। समझे क्या थे बस पढ़ लिया था। सत्याग्रह जैसे शब्द पर उनको कोई  भरोसा नहीं था।
थैंक्स अन्ना मुझे, मेरे दोस्तों को, मेरे मम्मा-डैडी और उनके दोस्तों को भी सत्याग्रह की मीनिंग बताने के लिए और इस देश को कुछ हद तक बचाने का प्रयास करने के लिए। अब मै गर्व से कह सकता हूँ कि मै गाँधी को नहीं जानता तो क्या हुआ मै उनके अनुयायी अन्ना और उनके सत्याग्रह को जानता हूँ वो भी प्रत्यक्ष. प्रमाण के साथ.

No comments:

Post a Comment